नवंबर के वो 15 दिन, जब हिल गया था इस्लाम
39 साल पहले नवंबर के महीने में सऊदी अरब के इतिहास में एक ऐसी घटना हुई, जिसने 15 दिनों तक इस्लाम को हिलाकर रख दिया.
ये वो घटना थी, जिसमें सलाफ़ी समूह ने इस्लाम की सबसे पवित्र जगह मक्का की मस्जिद को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था.
इस घटना में सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी.
20 नवंबर, 1979 इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से साल 1400 की पहली तारीख़ थी.
उस दिन मक्का मस्जिद में देश-विदेश से आए हज़ारों हज यात्री शाम के समय नमाज़ का इंतज़ार कर रहे थे.
क्या हुआ था उस दिन
जब नमाज़ ख़त्म होने को आई तो सफ़ेद रंग के कपड़े पहने लगभग 200 लोगों ने ऑटोमैटिक हथियार निकाल लिए.
इनमें से कुछ इमाम को घेरकर खड़े हो गए. जैसे ही नमाज़ ख़त्म हुई, उन्होंने मस्जिद के माइक को अपने क़ब्ज़े में ले लिया.
इसके बाद माइक से एलान किया गया, "हम माहदी के आगमन का एलान करते हैं, जो अन्याय और अत्याचारों से भरी इस धरती में न्याय और निष्पक्षता लाएंगे."
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार माहदी ऐसे उद्धारक हैं, जो क़यामत से पहले राज करते हुए बुराई का नाश करेंगे.
यह सुनकर लोगों को लगा कि यह क़यामत के दिन की शुरुआत है.
उस दौरान वहां हज करने आया एक युवा मुस्लिम धार्मिक छात्र भी था. उसने अपना अनुभव इस तरह से बयान किया था, "प्रार्थना के बाद कुछ लोगों ने माइक्रोफ़ोन निकाले और बोलना शुरू किया. उन्होंने कहा कि माहदी आ गए हैं. लोग ख़ुश थे कि रक्षक आ गया है. वे ख़ुशी से कह रहे थे- अल्लाह हु अकबर."
कौन थे हमलावर
ये हथियार बंद समूह अति कट्टरपंथी सुन्नी मुस्लिम सलाफ़ी थे. बदू मूल के युवा सऊदी प्रचारक जुहेमान अल-ओतायबी उनका नेतृत्व कर रहे थे.
इस बीच मस्जिद के स्पीकरों से घोषणा की गई कि माहदी उनके बीच हैं.
इस बीच लड़ाकों के समूह से एक शख़्स भीड़ की ओर बढ़ा. यह आदमी था- मोहम्मद अब्दुल्ला अल-क़हतानी.
मस्जिद से कहा गया, यही हैं माहदी जिऩके आने का सबको इंतज़ार था.
तभी सबके सामने जुहेमान ने भी मोहम्मद अब्दुल्ला (तथाकथित माहदी) के प्रति सम्मान अदा किया ताकि बाक़ी लोग भी सम्मान जताएं.
क़ब्ज़ा और संघर्ष
इस बीच अब्दुल मुने सुल्तान नाम का एक और छात्र यह देखने के लिए मस्जिद के अंदर गया कि आख़िर हो क्या रहा है.
उसने अंदर का हाल कुछ इस तरह से बताया था, "लोग हैरान थे. उन्होंने हरम में पहली बार किसी को बंदूक़ों के साथ देखा. ऐसा पहली बार हुआ. वो डरे हुए थे."
इस बीच जुहेमान ने लड़ाकों से कहा कि मस्जिद को पूरी तरह बंद कर दें. कई हज यात्रियों को अंदर ही बंधक बना लिया गया.
इसके बाद मीनारों पर स्नाइपर तैनात कर दिए गए जो 'माहदी के दुश्मनों' से लड़ने के लिए तैयार थे.
वे लोग सऊदी बलों को भ्रष्ट, अनैतिक और पश्चिम से जुड़े हुए मानते थे.
इसलिए जब पुलिस वहां यह देखने आई कि क्या हो रहा है, लड़ाकों ने उनके ऊपर गोलियां चला दीं.
ये वो घटना थी, जिसमें सलाफ़ी समूह ने इस्लाम की सबसे पवित्र जगह मक्का की मस्जिद को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था.
इस घटना में सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी.
20 नवंबर, 1979 इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से साल 1400 की पहली तारीख़ थी.
उस दिन मक्का मस्जिद में देश-विदेश से आए हज़ारों हज यात्री शाम के समय नमाज़ का इंतज़ार कर रहे थे.
क्या हुआ था उस दिन
जब नमाज़ ख़त्म होने को आई तो सफ़ेद रंग के कपड़े पहने लगभग 200 लोगों ने ऑटोमैटिक हथियार निकाल लिए.
इनमें से कुछ इमाम को घेरकर खड़े हो गए. जैसे ही नमाज़ ख़त्म हुई, उन्होंने मस्जिद के माइक को अपने क़ब्ज़े में ले लिया.
इसके बाद माइक से एलान किया गया, "हम माहदी के आगमन का एलान करते हैं, जो अन्याय और अत्याचारों से भरी इस धरती में न्याय और निष्पक्षता लाएंगे."
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार माहदी ऐसे उद्धारक हैं, जो क़यामत से पहले राज करते हुए बुराई का नाश करेंगे.
यह सुनकर लोगों को लगा कि यह क़यामत के दिन की शुरुआत है.
उस दौरान वहां हज करने आया एक युवा मुस्लिम धार्मिक छात्र भी था. उसने अपना अनुभव इस तरह से बयान किया था, "प्रार्थना के बाद कुछ लोगों ने माइक्रोफ़ोन निकाले और बोलना शुरू किया. उन्होंने कहा कि माहदी आ गए हैं. लोग ख़ुश थे कि रक्षक आ गया है. वे ख़ुशी से कह रहे थे- अल्लाह हु अकबर."
कौन थे हमलावर
ये हथियार बंद समूह अति कट्टरपंथी सुन्नी मुस्लिम सलाफ़ी थे. बदू मूल के युवा सऊदी प्रचारक जुहेमान अल-ओतायबी उनका नेतृत्व कर रहे थे.
इस बीच मस्जिद के स्पीकरों से घोषणा की गई कि माहदी उनके बीच हैं.
इस बीच लड़ाकों के समूह से एक शख़्स भीड़ की ओर बढ़ा. यह आदमी था- मोहम्मद अब्दुल्ला अल-क़हतानी.
मस्जिद से कहा गया, यही हैं माहदी जिऩके आने का सबको इंतज़ार था.
तभी सबके सामने जुहेमान ने भी मोहम्मद अब्दुल्ला (तथाकथित माहदी) के प्रति सम्मान अदा किया ताकि बाक़ी लोग भी सम्मान जताएं.
क़ब्ज़ा और संघर्ष
इस बीच अब्दुल मुने सुल्तान नाम का एक और छात्र यह देखने के लिए मस्जिद के अंदर गया कि आख़िर हो क्या रहा है.
उसने अंदर का हाल कुछ इस तरह से बताया था, "लोग हैरान थे. उन्होंने हरम में पहली बार किसी को बंदूक़ों के साथ देखा. ऐसा पहली बार हुआ. वो डरे हुए थे."
इस बीच जुहेमान ने लड़ाकों से कहा कि मस्जिद को पूरी तरह बंद कर दें. कई हज यात्रियों को अंदर ही बंधक बना लिया गया.
इसके बाद मीनारों पर स्नाइपर तैनात कर दिए गए जो 'माहदी के दुश्मनों' से लड़ने के लिए तैयार थे.
वे लोग सऊदी बलों को भ्रष्ट, अनैतिक और पश्चिम से जुड़े हुए मानते थे.
इसलिए जब पुलिस वहां यह देखने आई कि क्या हो रहा है, लड़ाकों ने उनके ऊपर गोलियां चला दीं.
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